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ऋ॒तस्य॑ दृ॒ळ्हा ध॒रुणा॑नि सन्ति पु॒रूणि॑ च॒न्द्रा वपु॑षे॒ वपूं॑षि। ऋ॒तेन॑ दी॒र्घमि॑षणन्त॒ पृक्ष॑ ऋ॒तेन॒ गाव॑ ऋ॒तमा वि॑वेशुः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛtasya dṛḻhā dharuṇāni santi purūṇi candrā vapuṣe vapūṁṣi | ṛtena dīrgham iṣaṇanta pṛkṣa ṛtena gāva ṛtam ā viveśuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒तस्य॑। दृ॒ळ्हा। ध॒रुणा॑नि। स॒न्ति॒। पु॒रूणि॑। च॒न्द्रा। वपु॑षे। वपूं॑षि। ऋ॒तेन॑। दी॒र्घम्। इ॒ष॒ण॒न्त॒। पृक्षः॑। ऋ॒तेन। गावः॑। ऋ॒तम्। आ। वि॒वे॒शुः ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:23» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ऋतस्य) सत्य धर्म्म के आचरण से ही (दृळ्हा) दृढ़ (धरुणानि) जलों के सदृश शान्त आचार (पुरूणि) बहुत (चन्द्रा) आनन्द देनेवाले सुवर्ण आदि (वपुषे) सुन्दर रूपयुक्त शरीर के लिये (वपूंषि) रूपों को प्राप्त (सन्ति) हैं और (ऋतेन) सत्य आचरण से (पृक्षः) उत्तम प्रकार स्पर्श होने योग्य अन्न आदिक (दीर्घम्) चिरकाल रहनेवाले आयु को (इषणन्त) प्राप्त होते हैं (ऋतेन) सत्य आचरण से (गावः) गौवें जैसे बछड़ों के स्थानों को वैसे उत्तम प्रकार शिक्षित वाणियाँ (ऋतम्) सत्य ब्रह्म को (आ, विवेशुः) प्राप्त होती हैं, ऐसा जानो ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे जल से प्राणधारण, अन्न आदि की उत्पत्ति और सुन्दर और दीर्घ अवस्था होती है, वैसे ही सत्य आचरण से सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य, विद्या और बहुत काल पर्य्यन्त जीवन होता है, जिससे निरन्तर सत्य ही का आचरण करो ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! ऋतस्याचरणेनैव दृळ्हा धरुणानि पुरूणि चन्द्रा वपुषे वपूंषि प्राप्तानि सन्ति। ऋतेन पृक्षो दीर्घञ्चायुरिषणन्त ऋतेन गाव ऋतमाविवेशुरिति विजानीत ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतस्य) सत्यस्य धर्म्मस्य (दृळ्हा) दृढानि (धरुणानि) उदकानीव शान्तान्याचरणानि। धरुणमित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) (सन्ति) (पुरूणि) बहूनि (चन्द्रा) आह्लादकानि सुवर्णादीनि (वपुषे) सुरूपाय शरीराय (वपूंषि) रूपाणि (ऋतेन) सत्याचरणेन (दीर्घम्) चिरञ्जीविनम् (इषणन्त) प्राप्नुवन्ति (पृक्षः) संस्पृष्टव्यमन्नादिकम् (ऋतेन) सत्याचरणेन (गावः) धेनवो वत्सस्थानानीव सुशिक्षिता वाचः (ऋतम्) सत्यं ब्रह्म (आ) (विवेशुः) आविशन्ति ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथा जलेन प्राणधारणमन्नाद्युत्पत्तिः सुरूपं दीर्घमायुश्च जायते तथैव सत्याचारेण सकलैश्वर्य्यं विद्या चिरञ्जीवनञ्च भवति यतः सततं सत्यमेवाऽऽचरत ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जशी जलाने प्राण धारणा, अन्न इत्यादीची उत्पत्ती व सुंदर दीर्घायुष्य प्राप्त होते तसेच सत्याचरणाने संपूर्ण ऐश्वर्य, विद्या व दीर्घायुष्य प्राप्त होते, त्यासाठी सतत सत्याचे आचरण करा. ॥ ९ ॥